भारत को पर्वों और मेलों की भूमि कहा जाता है, क्योंकि यहाँ विभिन्न धर्म और संस्कृतियों से जुड़े लोग रहते हैं जो हर वर्ष अपने-अपने त्यौहार बड़े उत्साह और

श्रद्धा के साथ मनाते हैं। इन्हीं में से एक है दुर्गा पूजा, जिसे दुर्गोत्सव या षष्ठोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। यह हिंदुओं का एक प्रमुख धार्मिक उत्सव है, जो माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना और महिषासुर पर उनकी विजय की
स्मृति में मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
दुर्गा पूजा का समय
यह त्यौहार प्रतिवर्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से दशमी तक मनाया जाता है। लोग इसकी तैयारियाँ 1–2 महीने पहले से ही शुरू कर देते हैं। पूरे भारत में यह पर्व नृत्य, संगीत और उत्सव के रंगों से सराबोर रहता है। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, त्रिपुरा और सिक्किम में दुर्गा पूजा का आयोजन बहुत ही भव्य रूप से किया जाता है।
दुर्गा पूजा का उत्सव और आयोजन
दुर्गा पूजा का असली उत्सव सप्तमी से प्रारंभ होता है और अष्टमी, नवमी तथा विजयादशमी तक चलता है। इन दिनों में माँ दुर्गा की आराधना, भजन-कीर्तन, नृत्य-नाटिका और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का विशेष आयोजन किया जाता है।
गाँवों से लेकर शहरों तक हर जगह माँ दुर्गा की सुंदर मिट्टी की प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं, जिन्हें फूलों, रोशनी और सजावट से भव्य रूप दिया जाता है। प्रतिमा में माँ दुर्गा को दस हाथों के साथ सिंह पर सवार दर्शाया जाता है, जहाँ वे अपने अस्त्र-शस्त्रों से असुरों का संहार करती हैं। उनके साथ माँ लक्ष्मी (धन एवं समृद्धि की देवी), माँ सरस्वती (विद्या एवं ज्ञान की देवी), भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की प्रतिमाएँ भी स्थापित की जाती हैं।
विदेशों में भी दुर्गा पूजा
भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े हर्षोल्लास और भक्ति भाव के साथ किया जाता है। विशेष रूप से बंगाली समुदाय के लोग इसे अपनी संस्कृति और परंपरा के रूप में हर जगह मनाते हैं।
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