भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने वाला जन्माष्टमी (Janmashtami) पूरे उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है। इस दिन देशभर के मंदिरों में विशेष आयोजन होते हैं, श्री कृष्ण के झूलों की सजावट की जाती है, और रासलीला का आयोजन भी बड़े उत्साह से किया जाता है।
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भगवान श्री कृष्ण का जन्म और कथा
माना जाता है कि श्री कृष्ण, देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र थे। उनके मामा कंस, जो मथुरा के अत्याचारी राजा थे, ने आकाशवाणी सुनते ही देवकी के आठवें पुत्र को मारने की साजिश की, क्योंकि उसी पुत्र से उनका अंत होने वाला था। कंस ने देवकी के पहले सात बच्चों को मार दिया।
श्री कृष्ण के जन्म के समय भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे नवजात श्री कृष्ण को गोकुल पहुंचाएँ, जहाँ उन्हें यशोदा माता और नंद बाबा के पास रखा जाए। इस प्रकार, कंस के प्रकोप से बचकर जन्माष्टमी का पर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाने लगा।
धी हांड़ी की परंपरा
जन्माष्टमी के अवसर पर धी हांड़ी की प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जाती हैं। इसमें लड़कों का एक समूह एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर ऊँचाई पर लटकी हुई दही की हांड़ी को फोड़ने की कोशिश करता है। यह खेल मनोरंजक और चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि आस-पास लोग समूह पर पानी भी डालते हैं। जो टीम हांड़ी पहले फोड़ देती है, वह विजेता घोषित होती है। यह परंपरा श्री कृष्ण के बचपन की लीला को याद दिलाती है, जब वे घर-घर जाकर हांड़ी से दही चोरी करते थे।
जन्माष्टमी के अन्य महत्व
जन्माष्टमी न केवल भक्ति का पर्व है, बल्कि यह जीवन की समस्याओं का समाधान खोजने, सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त करने का भी अवसर माना जाता है। इस अवसर पर आप ज्योतिष और मार्गदर्शन के लिए आचार्य इंदु प्रकाश जी से परामर्श कर सकते हैं।
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