भारतीय ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में अनेकों शुभ-अशुभ योग निर्मित रूप से मानव जीवन पर सदैव अपने प्रभावों से जोड़े रखते हैं और समायानुसार मानवता की स्थितियों को प्रभावित करते रहते हैं | बात करते है आज जन्मकुंडली बन रहे चांडाल योग की – जन्मकुंडली में चांडाल योग राहु और गुरु के युक्त या दृष्टि संबंध से बनता है जिसे हम गुरु-चांडाल योग के नाम से पुकारते है। गुरुचांडाल योग गुरु ज्ञान, धर्म, सात्विकता का कारक है, तो दूसरी तरफ राहु सदैव व्यक्ति को भ्रम में डुबोये रखता है, व अनैतिक संबंध,अनैतिक कार्य, जुआ, सट्टा, नशाखोरी, अवैध व्यापार का कारक है। इन दो ग्रहों के युक्त प्रभाव से जातक की कुंडली में बन रहे गुरु चांडाल योग व्यक्ति को प्रभावशील बनाये रखता है ।
राहु गुरु के प्रभाव को नष्ट करता है व उस जातक को अपने प्रभाव में जकड़ लेता है और ऐसा राहु हिंसक व्यवहार आदि प्रवृत्तियों को भी बढ़ावा देता है तथा अपने चरित्र पतन के बीज बो देता है और अपने चरित्र को भ्रष्ट कर देता है। गुरु चांडाल से जुड़ा हुआ व्यक्ति सदैव अनैतिकता तथा अवैध क्रिया- कलापों में मग्न रह्ता है । चांडाल दोष के निर्माण में बृहस्पति को गुरु कहा गया है तथा राहु को चांडाल माना गया है। गुरु को चांडाल माने जाने वाले ग्रह से संबंध स्थापित होने से कुंडली में गुरु चांडाल योग का बनना माना जाता है।
गुरु चांडाल योग जातक को बहुत अधिक भौतिकवादी बना देता है, जिसके चलते ऐसा जातक अपनी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है। जिसके लिए ऐसा जातक अधिकतर अनैतिक अथवा अवैध कार्यों को अपना लेता है। सामान्य भाषा में कहें तो यह योग शुभ नहीं माना जाता। यह चांडाल योग जिस भाव में होता है, उस भाव के शुभ फलों की कमी करता है पराई स्त्रियों में मन लगवाता है, ।
यदि जन्मकुंडली के लग्न यानि प्रथम भाव, पंचम, सप्तम, नवम या दशम भाव का स्वामी गुरु ग्रह होकर चांडाल योग बनाता हो तो ऐसे व्यक्तियों को जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है और अपने भौतिक जीवन में अनेकों बार गलत निर्णयों से नुकसान उठाना पड़ता है। पद-प्रतिष्ठा को भी धक्का लगने की आशंका रहती है। यदि आप इन सभी परेशानियों से घिरे हों तो आप विश्व विख्यात ज्योतिषाचार्य इन्दु प्रकाश जी द्वारा अपनी जन्मकुंडली से जानकारी प्राप्त सकते हैं।
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