भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार व ज्योतिष शास्त्र द्वारा निर्मित हिंदु पंचाग के अनुसार हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी (Kalashtmi) का पर्व भारत वर्ष में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। कालाष्टमी को ‘भैरवाष्टमी’ के नाम से भी जाना जाता है। भगवान भोलेनाथ के भैरव रूप के स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। यह मान्यता है की कालाष्टमी (Kalashtmi) के दिन भगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे। कालाष्टमी (Kalashtmi) के दिन भगवान भैरव की पूजा व उपासना से भक्त को मनोवांछित फल मिलता है। अत: भैरव जी की पूजा-अर्चना करने व कालाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन कालभैरव के दर्शन एवं पूजन से मनवांछित फल प्राप्त होता है।
पौराणिक कथाओं में कालाष्टमी (Kalashtmi) की व्रत कथा मिलती है कि एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच विवाद छिड़ गया कि श्रेष्ठ कौन है। यह विवाद इतना अधिक बढ़ गया कि सभी देव गण घबरा गए की अब परलय होने वाला है और सभी देव भगवन शिव के पास चले गए और समाधान ढूंढ़ने लग गए और ठीक उसी समय भगवान शिव ने एक सभा का आयोजन किया और भगवान शिव ने इस सभा में सभी ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि उपस्थित किये और साथ में विष्णु व ब्रह्मा जी को भी आमंत्रित किया ।
सभा में लिए गए एक निर्णय को भगवान
विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, किंतु ब्रह्मा
जी संतुष्ट नहीं होते। वे महादेव का अपमान करने लगते हैं। शांतचित शिव यह अपमान
सहन न कर सके और ब्रह्मा द्वारा अपमानित किए जाने पर उन्होंने रौद्र रूप धारण कर
लिया। भगवान शंकर प्रलय के रूप में नजर आने लगे और उनका रौद्र रूप देखकर तीनों लोक
भयभीत हो गए।
भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान
भैरव प्रकट हुए। वह श्वान पर सवार थे, उनके
हाथ में दंड था। हाथ में दंड होने के कारण वे ‘दंडाधिपति’ कहे गए। भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। उन्होंने ब्रह्म देव के
पांचवें सिर को काट दिया तब ब्रह्म देव को उनके गलती का एहसास हुआ। तत्पश्च्यात
ब्रह्म देव और विष्णु देव के बीच विवाद ख़त्म हुआ और उन्होंने ज्ञान को अर्जित किया
जिससे उनका अभिमान और अहंकार नष्ट हो गया।
कालाष्टमी पूजा विधि –
भगवान शिव द्वारा प्रकट भगवान भैरव का
जन्म मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी के दिन हुआ इसलिये हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के
मध्यरात्रि में भैरव की पूजा आराधना की जाती है व रात्रि जागरण भी किया जाता है।
दिन में भैरव उपासक उपवास भी रखते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव के भैरव रूप की
उपासना करने वाले भक्तों को भैरवनाथ की षोड्षोपचार सहित पूजा करनी चाहिए।
भैरव की साधना करने से हर तरह की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। और विशेषकर जातक की जन्मकुंडली में बैठे अशुभ व क्रूर ग्रह तथा शनि, राहू, केतु व मंगल जैसे मारकेश ग्रहों का प्रभाव कम होता है और व्यक्ति धीरे- धीरे एक सदमार्ग की ओर आगे चलता है। भगवान काल भैरव के जप-तप व पूजा-पाठ और हवन से मृत्यु तुल्य कष्ट भी समाप्त हो जाते हैं। यदि आप इस लेख से जुड़ी अधिक जानकारी चाहते हैं या आप अपने जीवन से जुड़ी किसी भी समस्या से वंचित या परेशान हैं तो आप नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक कर हमारे ज्योतिशाचार्यो से जुड़ कर अपनी हर समस्याओं का समाधान प्राप्त कर अपना भौतिक जीवन सुखमय बना सकते हैं।