
मनुष्य अपने जीवन में कई तरह के दुखों का सामना करता है | इनमे से सभी दुखों का कारण होता है अपने आप को कम आंकना और दूसरों से अपनी तुलना करना | ऐसा करना इंसानी फितरत में है की वह अपनी दूसरों से तुलना करता है और और पहले से ज्यादा दुखी हो जाता है | यही है इंसान की सबसे बही कमजोरी | और मनुष्य अपने विचार भी अपने काबू में अनहि रख पाता जिसकी वजह से दुःख और बढ़ता जाता है | ऐसा होने पर मनुष्य अपने दुःख और विफलताओं का कारण खुद को नही बल्कि दूसरों को ठहरता है | फिर उसके अपने भि उसको शत्रु लगने लगते है |
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अगर ऐसा चिंतन करने से आपको सिर्फ तनाव मिले तो ऐसा चिंतन कर के क्या फायदा | इससे आपको डिप्रेशन, अनिद्र्ता, ब्लड प्रेशर की बीमारियाँ होंगी जिससे आपको ही नुक्सान होगा | हम अपने मन में विचार आने से नहीं रोक सकते, यह प्राकृतिक क्रिया है | किंतु हम यह ज़रूर क्र सकते है की हमारे मन में किस तरह के विचार आते हैं |
हमारे मन में हर पल विचारों की तरंगें उठती रहती हैं जो की ज़रुरी भी है पर यह आपको फैसला करना है की आपके मन में किस तरह के विचार आयें, कितने सकारात्मक विचार आये, कितने नकारात्मक विचार आयें | नकारात्मक और गंदे विचार आपको बेफिजूल के कामों में कार्यरत करते हैं जिससे आपको बचना है |
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