नवरात्रि के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। सिद्ध माने मोक्ष और माँ सिद्धिदात्री माने मोक्ष प्रदान करने वाली।
नवरात्र में विशेष तौर पर मां के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान है। आज नवरात्री का आखिरी दिन है और आज के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है।
इस दिन छोटी कन्यायो की पूजा की जाती है। अलग-अलग उम्र की कन्याएं देवी के अलग-अलग रूप को दर्शाती हैं। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्तों का नवरात्र व्रत पूरा होता है।
माता सिद्धिदात्री की आरती
जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता।
तू भक्तो की रक्षक तू दासो की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा मैं तो न कोई विधि है।
तू जगदम्बें दाती तू सर्वसिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमरि न करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन मैं धरे जो॥
तू सब काज उसके कराती हो पूरे।
कभी काम उसके रहे न अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सर पैर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धिदाती वो है भागयशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहाँ वास तेरा।
महानंदा मंदिर मैं है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
वंदना है सवाली तू जिसकी दाता॥
नवरात्री के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री को धान का लावा अर्पित किया जाता है और प्रसाद के रूप में खुद भी ग्रहण किया जाता है।
नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की सच्चे दिल से आराधना की जाती है और मंत्र का 1 माला जाप करे, स्त्रोत पढ़े और आरती करे।
नवमीके दिन कन्या पूजन काशुभ मुहूर्त –
सुबह 10 बजकर 46 मिनट से दोपहर 3बजकर 3मिनट तक।
कन्या पूजन की विधि –
– कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित कर दिया जाता है।
– मुख्य कन्या पूजन के दिन इधर-उधर से कन्याओं को पकड़ के लाना सही नहीं होता है या फिर किसी मंदिर में जाके नौ कन्यायो का पूजन कर सकते है।
– गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं।
– अब इन कन्याओं को स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को पानी से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छू कर आशीष लेना चाहिए।
– उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए।
– फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं।
– भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें।
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