Annapurna Jayanti Achayra Indu Prakash

कैसे हुई माता अन्नपूर्ण की उत्पत्ति

मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को सुख-सौभाग्य तथा समृद्धि को देने वाली माँ  ‘अन्नपूर्णा जयंती’ (Annapurna Jayanti) हर्ष और उल्लास के साथमनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में एक बार जब पृथ्वी पर अन्न की कमी हो गयी थी, तब माँ पार्वती (गौरी) ने अन्न की देवी, ‘माँ अन्नपूर्णा’ के रूप में अवतरित हो पृथ्वी लोक पर अन्न उपलब्ध कराकर समस्त मानव जाति की रक्षा की थी। जिस दिन माँ अन्नपूर्णा की उत्पत्ति हुई, वह मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा थी। इसी कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन ‘अन्नपूर्णा जयंती’ मनाई जाती है। इस दिन ‘त्रिपुर भैरवी जयंती’ भी मनाई जाती है।

माता अन्नपूर्णा अन्न की देवी हैं। यह माना जाता है कि इस दिन रसोई, चूल्हे, गैस आदि का पूजन करने से घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती और अन्नपूर्णा देवी की कृपा सदा बनी रहती है। अन्नपूर्णा जयंती (Annapurna Jayanti) के दिन माँ अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है और इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्त्व है।

माँ अन्नपूर्णा की उत्पति

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब पृथ्वी लोक पर अन्न और जल समाप्त होने लगा तो जनमानस में हाहाकार मच गया। ऋषियों और मुनियों ने भगवान् ब्रह्मा तथा भगवान् विष्णु को इस संकट से अवगत कराया। तत्पश्चात् ब्रह्मा जी और विष्णु जी समस्त ऋषि और मुनियों के साथ कैलाश पहुँचे। ब्रह्मा जी ने भगवान् शिव से कहा, “प्रभु, पृथ्वी पर अन्न और जल की कमी हो गयी है। आप ही कुछ कीजिये और इस संकट से सबकी रक्षा कीजिये।” भगवान् शिव ने देवताओं को आश्वसन दिया कि सब कुछ यथावत हो जायेगा, बस वे शांति बनाये रखे। तत्पश्चात् भगवान् शिव ने पृथ्वी का भ्रमण किया। उसके उपरान्त माता पार्वती ने अन्नपूर्णा रूप ग्रहण किया। भगवान् शिव ने भिक्षु का रूप ग्रहण करके माता अन्नपूर्णा से भिक्षा ले पृथ्वीवासियों में अन्न-जल वितरित किया। इस प्रकार सभी प्राणियों को अन्न और जल की प्राप्ति हुई। सभी हर्ष के साथ माता अन्नपूर्णा की जय-जयकार करने लगे। तभी से प्रति वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है और माता अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है।

अन्नपूर्णा जयंती (Annapurna Jayanti) अन्न के महत्व का ज्ञान कराती है, और यह संदेश देती है कि कभी भी अन्न का निरादर नहीं करना चाहिए और न ही उसे व्यर्थ करना चाहिए। जितनी जरूरत हो उतना ही भोजन पकाएँ ताकि अन्न बर्बाद ना हो। इस दिन लोग अन्न दान करते हैं और जगह-जगह भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। अन्नदाता माने जाने वाले किसान भी अच्छी फ़सल के लिए अन्नपूर्णा जयन्ती पर अन्नपूर्णा देवी की पूजा करते हैं।

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