राम भक्त हनुमान
शास्त्रानुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को एकादश रुद्रावतार श्री राम भक्त हनुमान का जन्म माता अंजनी के उदर से हुआ था । पंचांग के अनुसार हनुमान जी का जन्म हस्त नक्षत्र में हुआ था । एकादश रुद्रावतार का अर्थ है कि हनुमान जी भगवान शिव के 11वें अवतार थे । वानर रूप में हनुमान जी का जन्म इस धरती पर श्री राम भक्ति और राम कार्य सिद्ध करने के लिए ही हुआ था । रामायण में हनुमान जी का विशेष रूप से चरित्र-चित्रण किया गया है । अगर रामायण में राम के साथ-साथ हनुमान न होते तो रामायण का इतना सुंदर वर्णन कदापि नहीं हो पाता । हनुमान जी के इस नाम के पीछे एक किस्सा छिपा है- एक बार बाल्यकाल में हनुमान जी खाने की तलाश में आकाश में इधर-उधर विचरण कर रहे थे कि उनकी दृष्टि उगते हुए सूरज पर पड़ी और वे उसे फल समझकर निगलने गये । उसी दिन ग्रहण के कारण सूर्य को ग्रसने के लिए राहु भी आया हुआ था । परन्तु राहु हनुमान जी को देखकर उसे दूसरा राहु समझकर वहां से भाग गया और जाकर सारा वृतांत इन्द्र देव को सुना दिया । यह सब सुनकर इन्द्र को क्रोध आ गया और उन्होंने अंजनीपुत्र पर वज्र से प्रहार कर दिया । वज्र के प्रहार से हनुमान जी की ठोड़ी टेढ़ी हो गई, जिसके कारण उनका नाम हनुमान पड़ा क्योंकि हनु का एक अर्थ ठोड़ी होता है ।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य, शनि व राहु के दोषों के निवारण हेतु हनुमान जी की आराधना विशेष हितकारी मानी जाती है । यही कारण है कि हनुमान जयंती के दिन हनुमान जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है तथा व्रत भी किया जाता है । आज के दिन रामभक्तों द्वारा स्नान-ध्यान, भजन पूजन और सामूहिक पूजा में हनुमान चालीसा के पाठ का विशेष आयोजन किया जाता है। इस दिन हनुमान मंदिरों की चोटी पर सिंदूरी रंग की ध्वजा भी चढ़ाई जाती है।
रामायण की एक कथा अनुसार एक बार माता सीता अपनी मांग में सिंदूर लगा रही थीं । उसी समय हनुमान की नजर उन पर पड़ी और वे सीता जी से बोले, ”माता यह लाल द्रव्य जो आप अपने मस्तक पर सजा रही हैं, यह क्या है और इसके लगाने से क्या होता है?’’ तब सीता जी बोलीं- ”यह सिंदूर है। इसे लगाने से प्रभु दीर्घायु होते हैं और मुझसे सदैव प्रसन्न रहते हैं।“ तब श्री हनुमान जी ने विचार किया कि जब सीता माता के थोड़ा-सा सिंदूर लगाने से प्रभु को लम्बी उम्र प्राप्त होती है तो क्यों न मैं अपने सम्पूर्ण शरीर पर सिंदूर पोतकर प्रभु को अजर-अमर कर दूं । ऐसा विचार करके हनुमान जी ने अपने सम्पूर्ण शरीर पर सिंदूर पोत लिया और राम दरबार में पहुंच गए । हनुमान जी का सिंदूर से लिपा-पुता शरीर देखकर भगवान श्री राम हंसने लगे और हंसते-हंसते बोले, ”वत्स ! ये कैसी दशा बनाकर आए हो ।“ तब हनुमान जी ने सारा वृतान्त बताया । सारी बात सुनकर श्री राम जी अति प्रसन्न होकर बोले, ”वत्स तुम जैसा मेरा अन्य कोई भक्त नहीं है।“ तब श्री राम ने हनुमान जी को अमरत्व प्रदान किया और कहा आज से सर्वत्र तुम्हारी पूजा होगी । तभी उस दिन से हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाया जाता है ।
श्री हनुमान मंत्र
विद्या प्राप्ति के लिए
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
बल व बुद्धि प्राप्त करने हेतु
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार।।
रोग मुक्ति के लिए
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।। या
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रोग नाश के लिए
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमंत बल-बीरा।।
भूत-प्रेत व भय से मुक्ति के लिए
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
महावीर की कृपा प्राप्त करने के लिए
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
उपरोक्त मन्त्रों का 108 बार जप करें।
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