मानव जीवन में हर व्यक्ति चाहता है कि मेरा जीवन सदैव हर प्रकार से खुशियाँ से भरा रहे और में एक सुखी जीवन यापन करता रहूँ परन्तु ग्रहों की चाल ऐसा कहाँ होने देती जो की सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अपना दब-दवाव बनाये रखती है। भारतीय फलित ज्योतिष गणना के अनुसार ग्रह कहीं न कहीं से अपना शुभ-अशुभ प्रभाव जातक के उपर बनाये रखती और जातक को अपने प्रभाव से घेर देती है। देखा जाय तो यदि कोई भी ग्रह जन्मकुंडली के छठे भाव में अशुभ योग बना कर बैठा हो तो वह ग्रह जातक को अनेकों बिमारियों से घेर देती है। जैसे- अनियमित दिनचर्या, और जीवन शैली से। लेकिन कई बार न तो बीमारी डॉक्टर के समझ आती है और न ही व्यक्ति खुद समझ पाता है कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है और उसके बाद अपने से जुडी बीमार के ऊपर व्यक्ति लाखों रुपये खर्च कर देता है। परन्तु यह सारा खेल व्यक्ति के ऊपर बने ग्रहों के प्रभाव के कारण होता है। लेकिन एक बार इस वजह पर भी ज्योतिषीय नजर डालें क्योंकि बीमार की एक वजह और भी होती है और वह होती है आपकी कुंडली में ग्रहों की स्थिति और ग्रहों की महादशा और अंतरदशा ।
आइये आज जानते हैं विश्व विख्यात ज्योतिषाचार्य इन्दु प्रकाश जी द्वारा कुंडली में बैठे अशुभ चन्द्र ग्रह के प्रभाव की –
चन्द्र ग्रह- ह्रदय एवं फेफड़े सम्बन्धी रोग, बाएं नेत्र में विकार, अनिद्रा, अस्थमा, डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग, मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, पीलिया, मानसिक रोग इत्यादि ये सभी रोग चंद्र ग्रह कि अशुभता के कारण होती है।किसी भी रोग से मुक्ति रोगकारक ग्रह की दशा अर्न्तदशा की समाप्ति के पश्चात ही प्राप्त होती है।
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