भारतीय अखण्ड ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मानव जीवन में सूर्य ग्रह का विशेष महत्व है। हिन्दू धर्म में सूर्य को तेजोमयी देव का स्वरूप मानकर इनकी विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। यह ग्रह धरती पर ऊर्जा का सबसे बड़ा प्राकृतिक अद्भुद स्रोत है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य को सभी ग्रह , नक्षत्रों का स्वामी यानि पितामह माना जाता है। पृथ्वी से सूर्य की दूरी क्रमशः बुध और शुक्र के बाद सबसे कम है। इसका आकार सभी ग्रहों से बहुत विशाल है। सौर मंडल में यह केन्द्र में स्थित है। ज्योतिषाचार्य इंदु प्रकाश जी कहते हैं की खगोलीय दृष्टि से सूर्य एक तारा है। लेकिन वैदिक ज्योतिष में यह एक महत्वपूर्ण और प्रमुख ग्रह है और जन्म कुंडली के अध्ययन में सूर्य की अहम भूमिका होती है। बात करते हैं सूर्य ग्रह के प्रथम भाव में उपस्थित उसके प्रभाव की |
यदि किसी भी जातक की जन्मकुंडली में सूर्य ग्रह प्रथम भाव में उपस्थित हो तो व्यक्ति स्वाभिमानी, क्रोधी, वात पित्त रोगी, बुद्धिमान, अस्थिर संपत्ति वाला, शूरवीर तथा वैवाहिक जीवन में कलह भोगने वाला होता है। प्रथम भाव में उपस्थित सूर्य इस बात का संकेत करता है कि आपका स्वाभाव स्पष्ट और उदार होगा।
आपके छोटे भाई और बहन भाग्यशाली होंगे वो अच्छे मित्रों वाले और पद प्रतिष्ठा वाले होंगे। आपकी मां धार्मिक विचारों वाली और तीर्थयात्रा करने वाली होंगी।
सरकार से आपके सम्बंध अच्छे रहेंगे। सत्ता से जुडे और शक्तिशाली लोगों से आपके अच्छे रिश्ते रहेंगे। आप अपने पिता का आदर करते हैं और उनकी आज्ञा मानते हैं। आपका जीवन साथी अच्छे खानदान से होगा। आप स्वभाव से ईमानदार और धार्मिक होंगे अथवा नैतिकता के दॄष्टिकोण से आपका बर्ताव उचित रहेगा। लेकिन यहां स्थित सूर्य आपके स्वभाव में आक्रामकता, कभी-कभी विवेक हीनता, आलस्य, क्षमाहीनता, घमंड, धर्यहीनता देता है। हांलाकि यह आपमें महत्वाकांक्षा और प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराने के गुण भी देता है। और व्यक्ति को बड़े ही उँचाहियों तक पहुंचाता है।
यदि आपको सूर्य के प्रथम भाव का फल नहीं मिल रहा है या आप किसी भी समस्या से परेशान या भौतिक सुखों से वंचित हैं तो आप अपनी जन्मकुंडली के माध्यम से विश्वविख्यात ज्योतिषाचार्य इंदु प्रकाश जी से संपर्क कर अपने बुरे योगों को मालूम कर एक सुखी जीवन यापन कर सकते।
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गुरु जी की कृपा मैं भी चाहता हूँ।