मंदिर के पवित्र स्थल की आंतरिक दीवारे पौराणिक कथाओ और बहुत से देवी – देवताओ की चित्रकला से विभूषित है। प्रतिष्ठित मंदिर की उत्पत्ति के प्रमाण हमें महान महाकाव्य महाभारत में दिखाई देते है।
यह मंदिर भारत के उत्तराखंड में केदारनाथ की मंदाकिनी नदी के पास वाली घरवाल हिमालय पर्वत श्रुंखालओ पर बना हुआ है। चरम मौसम की स्थिति के कारण यह मंदिर अप्रैल (अक्षय तृतीया) से कार्तिक पूर्णिमा (साधारणतःनवम्बर) तक ही खुला रहता है। सर्दियों के मौसम में केदारनाथ के भगवान शिव की मूर्ति को उखीमठ ले जाया जाता है और वहाँ 6 महीनो तक उनकी पूजा की जाती है। भगवान शिव की पूजा ‘केदारनाथ धाम’ के नाम से की जाती है।
यह मंदिर 3881 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है, सीधे रास्ते से आप इस मंदिर में नही जा सकते और गौरीकुंड से मंदिर तक जाने के लिए आपको 21 किलोमीटर की पहाड़ी यात्रा करनी पड़ती है। मंदिर तक जाने के लिए गौरीकुंड में टट्टू और मेनन की सेवाए भी प्रदान की जाती है। इस मंदिर का निर्माण पांडवो ने करवाया था और आदि शंकराचार्य ने इसे पुनर्जीवित किया। साथ ही यह मंदिर 275 पैदल पत्र स्थलों में से भी एक है।
कहा जाता है की पांडवो ने केदारनाथ में तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। मंदिर के बाहर दरवाजे के पास नंदी का पुतला भी बना हुआ है, जो एक रक्षक का काम करता है।
भारत में उत्तरी हिमालय के छोटे चार धामों में से एक यह मंदिर है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह सर्वोच्च है।
2013 में उत्तर भारत में आयी बाढ़ की वजह से केदारनाथ और उसके आस-पास का क्षेत्र काफी प्रभावित हुआ। केदारनाथ और उसके आस-पास के क्षेत्रो को इस बाढ़ से काफी क्षति पहुची। लेकिन मंदिर के आंतरिक भाग को इससे ज्यादा क्षति नही पहुची। केदारनाथ मंदिर के चारो तरफ फैले विशालकाय पहाड़ बाढ़ से मंदिर की रक्षा करते है। लेकिन वर्तमान में यहाँ की परिस्थिति सुधर चुकी है और अब आम लोगो के लिए केदारनाथ के द्वार खुल चुके है।
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