जानिये ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्र ग्रह का मानव जीवन में शुभ-अशुभ प्रभाव

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भारतीय ज्योतिष गणना के अनुसार ब्रह्माण्ड के तमाम ग्रह, नक्षत्रों व पिंडों के माध्यम से मानव जगत पर पढ़ने वाले अनेकों शुभ – अशुभ प्रभाव का सार्थक अध्ययन जो की हमारे ऋषि-मुनीयों के हजारों वर्ष के तप व संचरण से अखंड ज्योतिष शास्त्र का उद्गमन हुआ जो आज के युग में विख्यात व सम्पूर्ण विश्व जगत में वायु के सामान प्रफुलित है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सम्पूर्ण मानव जगत में बारह राशियों व नौ ग्रहों तथा उनकी गति का शुभ-अशुभ प्रभाव पड़ता है। जो इस प्रकार हैं – सूर्य, चंद्र, गुरु, बुध, शुक्र, मंगल, शनि, राहु और केतु, इन्हीं सभी ग्रहो के माध्यम से व्यक्ति सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों से ग्रसित और अपने भौतक जीवन के जंजालों में उलझा रहता है और अपने भौतकजीवन को यापन करता रहता है। चाहे दुःख हो या सुख फिर भी जीवन से लड़ता रहता है।आज हम बात करते हैं चंद्र ग्रह की?
चंद्र ग्रह को चंचलता का प्रतीक माना गया है। जो की सोलह कलाओं से पूर्ण अमृता, मानदा, पूर्णा, तुष्टि, रति, धृति, शशिनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्रिया, प्रीति, अंगदा, पूर्णा एवं पूर्णमृता नाम से प्रतिष्ठित हैं। सोलह कलाओं से पूर्ण यह चंद्र ग्रह जातक की जन्मकुंडली में अपना एक प्रमुख स्थान बनाये रखता है और चंद्र ग्रह  ही मानव प्राणी की राशि को भी बतलाता है। जन्मकुंडली में जिस राशि में चंद्र ग्रह  रहता है वही जातक की जन्म राशि कहलाती हैl जन्मराशि से ही मनुष्य के मन का स्वभाव और वृत्तियों का पता चलता हैl चंद्रमा हर जीव प्राणी का मन होता हैlजीव और जीवन में मन की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है|
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस प्रकार सूर्य का प्रभाव जीवात्मा पर पूरा पड़ता है, ठीक उसी प्रकार चन्द्रमा का भी मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है ज्योतिष शास्त्र के विद्वान  प्राचीन  काल से यह मानते आ रहे हैं कि ग्रह तथा उपग्रह मानव जीवन पर हर  छण अपना प्रभाव बनाये रखता है। ठीक उसी प्रकार के भौतिक परिस्थिति पर भी चंद्रमा अपना प्रभाव बनाये रखता है। चंद्रमा का घटता बढ़ता आकार जिस प्रकार पृथ्‍वी पर समुद्र में ज्वार भाटा का कारक बनता हैl उसी प्रकार इसका प्रभाव मनुष्‍य के तन और मन पर भी पड़ता है। चन्द्रमा जैसे-जैसे कृष्ण पक्ष में छोटा व शुक्ल पक्ष में पूर्ण होता हैl वैसे-वैसे मनुष्य के मन पर भी चन्द्र का प्रभाव पड़ता है।
जन्मकुंडली में चंद्र एक मात्र ऐसा ग्रह है जो की अतिशीघ्र अपनी गति बदलता है और जातक को तुरंत लाभ अथवा हानि पहुंचाने की क्षमता रखता हैl पंचतारा ग्रहों में चन्द्रमा को जुकाम, चर्म रोग और हृदय रोग का प्रमुख कारक ग्रहमाना जाता है।यदि किसी भी जातक की जन्मकुंडली में चंद्र ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो वह जातक अनेकों बाधाओं से जैसे मुख्य रूप से पेट, पाचनशक्ति, स्तन, गर्भाशय, योनि और स्त्री के सभी गुप्तांगों से सम्बंधित रोग से पीड़ित यानि ग्रसित रहता हैl
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