माता सिद्धिदात्री

जगत जननी माता दुर्गा की नौवें स्वरूप का नाम सिद्धिदात्री है । सभी प्रकार की सिद्धियों को देने के कारण ही इन्हें सिद्धिदात्री कहा गया है । जैसा की हम सभी जानते है कि शिव जी का एक रूप अर्धनारीश्वर भी है, जिसका आधा हिस्सा स्वयं मां सिद्धिदात्री हैं । देव पुराण के अनुसार भगवान शिव ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था । देवी सिद्धिदात्री की आराधना करने से लौकिक तथा परलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होती है । अतः आप भी नवरात्रि के नौवें दिन ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नमः’ मंत्र से माता सिद्धिदात्री कि पूजा के साथ-साथ नौ कन्याओ को भोजन कराकर सिद्धिया प्राप्त कर सकते है ।

ज्योतिष के अनुसार माता सिद्धिदात्री का संबंध केतु से है और केतु ग्रह न होकर ग्रह की छाया है, छाया का हमारे जीवन पर बहुत असर पड़ता है । माना जाता हैं कि रोज पीपल की छाया में सोने से किसी भी प्रकार का बीमारी नहीं होती, परंतु यदि बबूल की छाया में सोते रहें तो दमा या चर्म संबंधी समस्या हो सकती है! ठीक इसी तरह केतु ग्रह कि छाया जिस व्यक्ति पर पड़ रही हो, उसको पेशाब की बीमारी (Urinary Problems), संतान प्राप्ति में बाधा (Son), बाल का झड़ना (Hair loss), कान खराब होना (Earing problems) तथा नस संबंधी समस्याएं, चर्म रोग, रीढ़ (Spine), घुटने (knee), लिंग, जोड़ आदि में समस्या उत्पन्न होना शुरू हो जाता है । अगर आप इनमें से किसी भी समस्या से परेशान है या किसी ऐसी बीमारी से जूझ रहे है जिसका पता नहीं चल पा रहा है, तो केतु के नक्षत्र- अशिवनी, मघा और मूल नक्षत्र में मंत्रो द्वारा सिद्ध किया हुआ केतु यंत्र या लहसुनिया धारण कर इन सभी समस्याओं से निजात पा सकते है, जो www.astroeshop.com पर बहुत ही कम धनराशि में उपलब्ध हैं या आचार्य

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