“देखन बागु कुअँर दुइ आए। बय किसोर सब भाँति सुहाए।
स्याम गौर किमि कहौं बखानी। गिरा अनयन नयन बिनु बानी।।”
मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष की पंचमी को विवाह पचंमी का पर्व मनाया जाता है जिसे श्री राम विवाह उत्सव भी कहते है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस तिथि को भगवान राम ने जनकनंदिनी सीता से विवाह किया था। इस बार यह पर्व 4 दिसम्बर, शनिवार को है। इस दिन राम मंदिरों में विशेष उत्सव मनाया जाता है। तुलसीदास जी ने राम-सीता विवाह का वर्णन बड़ी ही सुंदरता से श्रीरामचरित मानस में किया है। उनके अनुसार- श्री राम व लक्ष्मण जब ऋषि विश्वामित्र के साथ जनकपुरी पहुंचे तो राजा जनक और वहां के लोगों ने भव्य स्वागत कर पुष्प वर्षा की थी। राजा जनक के बुलावे पर ऋषि विश्वामित्र और उनके शिष्य श्रीराम व लक्ष्मण यज्ञ देखने सभा में उपस्थित हुए थे। अगले दिन धनुष यज्ञ का आयोजन हुआ। उस सभा में बहुत वीर एवं पराक्रमी राजा-महाराजा मौजूद थे। जिसमे सीता के स्वयंवर में आए सभी राजा महाराजा भगवान शिव का धनुष उठा भी नहीं पाये तब ऋषि विश्वामित्र ने राम से कहा उठो शिवजी का धनुष तोड़ो और जनक का संताप मिटाओ। गुरु विश्वामित्र के वचन सुनकर श्रीराम धनुष उठाने के लिये जब उसकी ओर बढ़े तो यह दृश्य देख सीता जी के मन में खुशी और उल्लास की लहर दैड़ गई। श्री राम को देखकर सीता जी ने मन ही मन उन्हे अपना पति मान लिया था। सीताजी के मन की बात श्रीराम जान गए और उन्होंने देखते ही देखते भगवान शिव का महान धनुष उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते ही एक भयंकर ध्वनि के साथ धनुष टूट गया। धनुष टूटने की ध्वनी तीनों लोकों में सुनायी दी। उस समय सखियों के बीच सीताजी ऐसी ही सुन्दर छबियों के बीच एक महाछबि जिनकी सुन्दरता देख कर कोई भी मोहित हो जाये। धनुष टूटने के बाद सीता और श्री राम का विवाह उत्सव शुरु होता है। विवाह विधि के अनुसार सीता जी ने जयमाला पहना कर श्री राम को अपना पति स्वीकार किया।
झाँझि मृदंग संख सहनाई। भेरि ढोल दुंदुभी सुहाई। बाजहिं बहु बाजने सुहाए। जहँ तहँ जुबतिन्ह मंगल गाए।।
उस समय उनके हाथ ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानो दो कमल चंद्रमा को जयमाला दे रहे हों। यह दृश्य देखकर देवता जन फूलों की वर्षा करने लगे। नगर और आकाश में उत्सव का माहौल था हर तरफ बाजे बजने लगे। सीता-राम की जोड़ी ऐसी सुशोभित हो रही थी मानो सुंदरता और श्रृंगार रस एकत्र हो गए हों। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सीता के विवाह के कारण ही यह दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है। श्री राम चरित मानस में वर्णित सीता जी के विवाह का प्रसंग तथा गौरी आशीर्वाद के प्रसंग का प्रतिदिन पाठ करने के फल स्वरुप शीघ्र ही उत्तम मनोन्कुल चरित्रवान, धनवान, रुपवान, क्रितिवान, कुलवान दिर्घजीवी, निरोगी, प्रेम करने वाला पति प्राप्त होता हैं। गिरिजा स्तुति पाठ शीघ्र विवाह हेतु एक चमत्कारी प्रयोग-
जय जय गिरिबरराज किसोरी ।
जय महेस मुख चंद चकोरी ।।
या
सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।
में से किसी एक मन्त्र का जाप करने से कार्य अवश्य सिद्ध होगा।
सीता राम विवाह के प्रसंग में गोस्वामी तुलसी दस रचित चैपाईयों के नियमित पाठ से चमत्कारिक लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं। सीता राम विवाह प्रसंग का पाठ बालकांड में दोहा संख्या 321 बाद के चैपाई, समय बिलोय की बसिष्ठ…..और अंत दोहा संख्या 325 की समाप्ति, जनु पाय महिपाल मणि क्रियान सहित फल चाही पर जाकर होती हैं। विवाह की इच्छा रखने वाली कन्यायों को चाहिए कि यह पाठ पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ स्नान यदि से निवृत होकर करें इसको शुरु करने के लिए आज का दिन यानि सीता राम विवाह का दिन सर्वश्रेष्ठ है, यदि किसी कारण वश आज के दिन इस पाठ का प्रारंभ नहीं कर पाते हैं तो पाठ का प्रारंभ गुरु और शुक्र के उदय काल में किसी शुभ विवाह मुहूर्त में करना चाहिए। गिरिजा पूजन के भांती ही राम जानकी का पूजन और संकल्प करने के उपरांत, संकल्प इस प्रकार करें और तदुपरांत पाठ प्रारंभ करें।
मम शीघ्र विवाहार्थ प्रियमनोनुकुलं वरं प्राप्यर्थं च श्रीसीताराम
प्रसीदये तयोः विवाह – प्रसंगे पाठमहं करिष्ये।
समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए। सादर सतानंदु सुनि आए।।
बेगि कुअँरि अब आनहु जाई। चले मुदित मुनि आयसु पाई।।
रानी सुनि उपरोहित बानी। प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी।।
बिप्र बधू कुलबृद्ध बोलाईं। करि कुल रीति सुमंगल गाईं।।
नारि बेष जे सुर बर बामा। सकल सुभायँ सुंदरी स्यामा।।
तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारीं। बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं।।
बार बार सनमानहिं रानी। उमा रमा सारद सम जानी।।
सीय सँवारि समाजु बनाई। मुदित मंडपहिं चलीं लवाई।।
छंद- चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमंगल भामिनीं।
नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर गामिनीं।।
कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं।
मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गती बर बाजहीं।।
दोहा- सोहति बनिता बृंद महुँ सहज सुहावनि सीय।
छबि ललना गन मध्य जनु सुषमा तिय कमनीय।।३२२।।
सिय सुंदरता बरनि न जाई। लघु मति बहुत मनोहरताई।।
आवत दीखि बरातिन्ह सीता।।:प रासि सब भाँति पुनीता।।
सबहि मनहिं मन किए प्रनामा। देखि राम भए पूरनकामा।।
हरषे दसरथ सुतन्ह समेता। कहि न जाइ उर आनँदु जेता।।
सुर प्रनामु करि बरसहिं फूला। मुनि असीस धुनि मंगल मूला।।
गान निसान कोलाहलु भारी। प्रेम प्रमोद मगन नर नारी।।
एहि बिधि सीय मंडपहिं आई। प्रमुदित सांति पढ़हिं मुनिराई।।
तेहि अवसर कर बिधि ब्यवहारू। दुहुँ कुलगुर सब कीन्ह अचाः।।
छंद- आचारु करि गुर गौरि गनपति मुदित बिप्र पुजावहीं।
सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु पावहीं।।
मधुपर्क मंगल द्रब्य जो जेहि समय मुनि मन महुँ चहैं।
भरे कनक कोपर कलस सो सब लिएहिं परिचारक रहैं।।1।।
कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर कियो।
एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासनु दियो।।
सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेम काहु न लखि परै।।
मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें करै।।2।।
दोहा- होम समय तनु धरि अनलु अति सुख आहुति लेहिं।
बिप्र बेष धरि बेद सब कहि बिबाह बिधि देहिं।।323।।
जनक पाटमहिषी जग जानी। सीय मातु किमि जाइ बखानी।।
सुजसु सुकृत सुख सुदंरताई। सब समेटि बिधि रची बनाई।।
समउ जानि मुनिबरन्ह बोलाई। सुनत सुआसिनि सादर ल्याई।।
जनक बाम दिसि सोह सुनयना। हिमगिरि संग बनि जनु मयना।।
कनक कलस मनि कोपर रूरे। सुचि सुंगध मंगल जल पूरे।।
निज कर मुदित रायँ अरु रानी। धरे राम के आगें आनी।।
पढ़हिं बेद मुनि मंगल बानी। गगन सुमन झरि अवसरु जानी।।
बरु बिलोकि दंपति अनुरागे। पाय पुनीत पखारन लागे।।
छंद- लागे पखारन पाय पंकज प्रेम तन पुलकावली।
नभ नगर गान निसान जय धुनि उमगि जनु चहुँ दिसि चली।।
जे पद सरोज मनोज अरि उर सर सदैव बिराजहीं।
जे सकृत सुमिरत बिमलता मन सकल कलि मल भाजहीं।।1।।
जे परसि मुनिबनिता लही गति रही जो पातकमई।
मकरंदु जिन्ह को संभु सिर सुचिता अवधि सुर बरनई।।
करि मधुप मन मुनि जोगिजन जे सेइ अभिमत गति लहैं।
ते पद पखारत भाग्यभाजनु जनकु जय जय सब कहै।।2।।
बर कुअँरि करतल जोरि साखोचारु दोउ कुलगुर करैं।
भयो पानिगहनु बिलोकि बिधि सुर मनुज मुनि आँनद भरैं।।
सुखमूल दूलहु देखि दंपति पुलक तन हुलस्यो हियो।
करि लोक बेद बिधानु कन्यादानु नृपभूषन कियो।।3।।
हिमवंत जिमि गिरिजा महेसहि हरिहि श्री सागर दई।
तिमि जनक रामहि सिय समरपी बिस्व कल कीरति नई।।
क्यों करै बिनय बिदेहु कियो बिदेहु मूरति सावँरी।
करि होम बिधिवत गाँठि जोरी होन लागी भावँरी।।4।।
दोहा- जय धुनि बंदी बेद धुनि मंगल गान निसान।
सुनि हरषहिं बरषहिं बिबुध सुरतरु सुमन सुजान।।324।।
कुअँरु कुअँरि कल भावँरि देहीं।।नयन लाभु सब सादर लेहीं।।
जाइ न बरनि मनोहर जोरी। जो उपमा कछु कहौं सो थोरी।।
राम सीय सुंदर प्रतिछाहीं। जगमगात मनि खंभन माहीं ।
मनहुँ मदन रति धरि बहु रूपा। देखत राम बिआहु अनूपा।।
दरस लालसा सकुच न थोरी। प्रगटत दुरत बहोरि बहोरी।।
भए मगन सब देखनिहारे। जनक समान अपान बिसारे।।
प्रमुदित मुनिन्ह भावँरी फेरी। नेगसहित सब रीति निबेरीं।।
राम सीय सिर सेंदुर देहीं। सोभा कहि न जाति बिधि केहीं।।
अरुन पराग जलजु भरि नीकें। ससिहि भूष अहि लोभ अमी कें।।
बहुरि बसिष्ठ दीन्ह अनुसासन। बरु दुलहिनि बैठे एक आसन।।
छंद- बैठे बरासन रामु जानकि मुदित मन दसरथु भए।
तनु पुलक पुनि पुनि देखि अपनें सुकृत सुरतरु फल नए।।
भरि भुवन रहा उछाहु राम बिबाहु भा सबहीं कहा।
केहि भाँति बरनि सिरात रसना एक यहु मंगलु महा।।1।।
तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै।
माँडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि के।।
कुसकेतु कन्या प्रथम जो गुन सील सुख सोभामई।
सब रीति प्रीति समेत करि सो ब्याहि नृप भरतहि दई।।2।।
जानकी लघु भगिनी सकल सुंदरि सिरोमनि जानि कै।
सो तनय दीन्ही ब्याहि लखनहि सकल बिधि सनमानि कै।।
जेहि नामु श्रुतकीरति सुलोचनि सुमुखि सब गुन आगरी।
सो दई रिपुसूदनहि भूपति रूप सील उजागरी।।3।।
अनुरुप बर दुलहिनि परस्पर लखि सकुच हियँ हरषहीं।
सब मुदित सुंदरता सराहहिं सुमन सुर गन बरषहीं।।
सुंदरी सुंदर बरन्ह सह सब एक मंडप राजहीं।
जनु जीव उर चारिउ अवस्था बिमुन सहित बिराजहीं।।4।।
दोहा- मुदित अवधपति सकल सुत बधुन्ह समेत निहारि।
जनु पार महिपाल मनि क्रियन्ह सहित फल चारि।।325।।
अखण्ड दाम्पत्य जीवन के लिए राम विवाहोत्सव के दिन गुरु शुक्र उदित होने पर रात्रि 10 बजे के बाद स्नान करके मन्त्र का जप करें-
सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।
If you are facing problems in your carrier, married life, child problem or any other issue related to your life concern with Acharya Indu Prakash “Worlds Best Astrologer”. For More Details or Information Call – 9971-000-226.
To know more about yourself. watch ‘Bhavishyavani’ show.