जानिए क्या है लोहड़ी पर्व, इसका महत्व और मनाने की विधि ?

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हिन्दू पंचांग के अनुसार लोहड़ी मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाई जाती है और इस बार लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी, 2019 को मनाया जाएगा. भारतीय संस्कृति में लोहड़ी पर्व का अपना अलग महत्व होता है। माना जाता है कि यह पर्व उल्लास के साथ सांस्कृतिक जुड़ाव को भी दर्शाता है। मूलत: यह पर्व पंजाब, और हरियाणा में मनाया जाता है। जैसा की हम जानते हैं कि लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति के ठीक पहले वाली रात और पौष माह की आखिरी रात को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन का संबंध सूर्य के मकर राशि के प्रवेश से होता है। इसे सर्दियों के जाने और बसंत के आने के संकेत के रूप में भी देखा जाता है। साथ ही साथ ठंड को दूर करता हुआ मौसम में बदलाव का संकेत बनता है।

लोहड़ी पर्व का महत्व

अगर हम लोहड़ी पर्व के महत्व की बात करें तो लोहड़ी का संधि विच्छेद करने से ही इस पर्व के महत्व का पता चल जाता है। लोहड़ी शब्द ल+ओह+ड़ी से मिलकर बना है। जिसमें ‘ल’ का अर्थ लकड़ी, ‘ओह’ का अर्थ गोहा (सूखे उपले), ‘ड़ी’ का अर्थ रेवड़ी होता है। यही कारण है कि इस त्यौहार को खूले स्थान पर आग जलाकर परिवार और आस-पड़ोस के साथ घेरा बनाकर मनाया जाता है। वैसे तो लोहड़ी पर्व से जुड़ी कई मान्यताएं हैं, उनमें से दुल्ला भट्टी की कहानी से जुड़ी हुई मान्यता प्रमुख है। मान्यतानुसार दुल्ला भट्टी एक लुटेरा हुआ करता था लेकिन वह हिंदू लड़कियों को बेचे जाने का विरोध करता था और उनकी शादी हिंदू लड़कों से करा देता था। इस कारण लोग उसे पसंद करते थें और उसका आभार लोहड़ी पर गीत गाकर करते हैं।

लोहड़ी से संबंधित एक मान्यता और है कि भगवान् श्री कृष्ण को मानने के लिए कंस ने लोहिता नामक राक्षसी को भेजा जिसका वध कृष्ण ने खेल खेल में कर दिया। लोहिता के वध की ख़ुशी में लोगों द्वारा लोहड़ी का त्यौहार मनाया गया।

कैसे मनाया जाता है लोहड़ी पर्व

त्यौहार को मनाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। यह पर्व रबी की फसल की बुनाई और कटाई से जुड़ा हुआ है। किसान इस दिन रबी की फसल जैसे तिल, गेहूं, तिल, मक्का,चना,सरसों, चिड़वे, रेवड़ी आदि को अग्नि को समर्पित करते है और भगवान् का आभार प्रकट करते है। इसे सर्दियों के जाने और बसंत के आने के संकेत के रूप में भी देखा जाता है।

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