16 दिनों तक चलने वाला महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद के शुक्लपक्ष की अष्टमी से प्रारम्भ होकर आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक चलता है। मान्यता है कि यह व्रत 16 दिन तक किया जाता है। अगर आप पूरे सोलह दिनों तक इस व्रत को करने में अगर आप असमर्थ हैं तो आप सोलह दिनों में से केवल 3 दिन के लिये यह व्रत कर सकते हैं। लेकिन ये तीन व्रत पहले, मध्य और आखिर में किये जाते हैं। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता और 16वें दिन पूजा कर इस व्रत का समापन किया जाता है। शास्त्रानुसार यह बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को रखने से मां लक्ष्मी जी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि –
पूजन के लिए सबसे पहले कलश की स्थापना की जाती है। राहुकाल को छोड़कर आप किसी भी शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना कर सकते हैं। कलश स्थापित करने के बाद कलश पर एक कच्चा नारियल लाल कपड़े में लपेट कर उस पर रख दें। माता महालक्ष्मी जी की प्रतिमा स्थापना दक्षिण-पूर्व कोने में कीजिए और प्रतिमा को लाल कपड़े से लपेट दीजिये। इसके लिए एक लकड़ी की चौकी लेकर उस पर श्वेत रेशमी कपड़ा बिछाएं और उस पर महालक्ष्मी जीकी प्रतिमा रख दें।
इन आठ नामों का जाप :
महालक्ष्मी की पूजा में हर दिन मां लक्ष्मी के लिए इन आठ नामों का जाप जरूर करें।
ऊं आद्यलक्ष्म्यै नम:, ऊं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:, ऊं अमृतलक्ष्म्यै नम:, ऊं कामलक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्यलक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योगलक्ष्म्यै नम:।
शास्त्रों के मुताबिक इस व्रत का संबंध महाभारत काल से हैं। माता कुंती तथा गांधारी द्वारा एक सरल व्रत के बारे में पूछने पर व्यास जी ने इस व्रत का व्याख्यान किया था।
लक्ष्मी जी की पूजा करते समय के नियम और सावधानियां –
– मां लक्ष्मी की पूजा सफेद या गुलाबी वस्त्र पहनकर करनी चाहिए.
– इनकी पूजा का उत्तम समय होता है- मध्य रात्रि या फिर सुबह 7 बजे से पहले.
– मां लक्ष्मी के उस प्रतिकृति की पूजा करनी चाहिए, जिसमें वह गुलाबी कमल के पुष्प पर बैठी हों.
– साथ ही उनके हाथों से धन बरस रहा हो.
– मां लक्ष्मी को गुलाबी पुष्प, विशेषकर कमल चढ़ाना सर्वोत्तम रहता है.
– मां लक्ष्मी जी के मन्त्रों का जाप स्फटिक की माला से करने पर वह जल्द ही प्रभावशाली होता है.
– मां लक्ष्मी के विशेष स्वरूप हैं, जिनकी उपासना शुक्रवार के दिन करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है.