भारतीय ज्योतिष शास्त्र और खंड प्रत्यक्ष शास्त्र के अध्ययन के अनुसार मलमास (जिसे खरमास या खरदोष भी कहा जाता है) विशेष महत्व रखता है। माना जाता है कि इस अवधि में विवाह, गृहप्रवेश, जनेऊ संस्कार, देव प्राण प्रतिष्ठा, मुंडन संस्कार, मकान निर्माण और अन्य मांगलिक कार्यों का निषेध होता है।
मलमास हर साल सूर्यदेव के धनु राशि में प्रवेश के समय से शुरू होता है। विश्व विख्यात ज्योतिषाचार्य इंदु प्रकाश जी के अनुसार, जैसे ही सूर्यदेव धनु राशि में प्रवेश करते हैं, मांगलिक कार्यों के लिए यह अवधि निषिद्ध हो जाती है।
खरमास का पौराणिक महत्व
हिन्दू धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि सूर्यदेव अपने रथ पर सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं और उन्हें कहीं पर भी रुकने की अनुमति नहीं होती। उनके रथ में जुड़े घोड़े लगातार चलते रहते हैं और कभी विश्राम नहीं पाते।
एक बार सूर्यदेव ने देखा कि घोड़े अत्यधिक थक गए हैं। उन्हें राहत देने के लिए वे एक तालाब के किनारे आए, लेकिन रथ रुकने पर ब्रह्मांड पर असंतुलन हो सकता था। उसी समय तालाब के किनारे दो खर (गधे) मौजूद थे। सूर्यदेव ने घोड़ों को कुछ समय के लिए विश्राम दिया और गधों को अपने रथ में जोड़ लिया। इससे रथ की गति धीमी हुई और एक मास के चक्र तक घोड़ों को विश्राम मिल गया।
इस प्रक्रिया के कारण हर सौर वर्ष में एक सौर मास खरमास कहलाता है। यही कारण है कि इस अवधि में मांगलिक कार्य करने से परहेज किया जाता है।
जन्मकुंडली के माध्यम से समाधान
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