21 May – विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस

पूरे विश्व में सांस्कृतिक विविधता का दिवस 21 मई को मनाया जायेगा । यह दिवस पूरे विश्व में अलग-अलग देशों की सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाने के लिये, उनकी विविधता को जानने के लिये मनाया जाता है । दुनिया के सभी देशों की अपनी अलग भाषा, अलग परिधान और अलग-अलग सांस्कृतिक विशेषताएं हैं । हमारी भारतीय संस्कृति भी विविधता की परिचायक है । इतनी अधिक विविधताओं के बावजूद भी भारतीय संस्कृति में एकता की झलक दिखती है ।

भारतीय संस्कृति का इतिहास बहुत पुराना है । हमारी संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति है । मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद से यह मिस्र और मेसोपोटेमिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं के समकालीन समझी जाने लगी है । भारतीय संस्कृति की शुरुआत सिंधु घाटी की सभ्यता के शुरू होने के साथ मानी जाती है जो आगे चलकर वैदिक युग में विकसित हुई । इसके बाद भारत की इस धरती पर बौद्ध धर्म एवं स्वर्ण युग की शुरुआत हुई । हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि भारतीय संस्कृति केवल भारत देश की संस्कृति नहीं है, बल्कि यह कई देशों की संस्कृतियों, उनके रीति-रिवाजों का मिलन है । प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि होने के कारण यहां अन्य देशों के लोगों की यात्राओं का सफर चलता रहा है जिसके साथ वहां की संस्कृति के अनेक रंग भी हमारी संस्कृति में आकर मिल गए और इस तरह समय के साथ-साथ भारतीय संस्कृति विस्तृत रूप लेती गई । इसके साथ ही हमारी संस्कृति की विरासत भी उन लोगों के जरिये अन्य देशों तक सदा से पहुंचती आ रही है । माना जाता है कि विश्व में मनाए जाने वाले अधिकतर पर्वों का जन्म भारतीय संस्कृति के मध्य से ही हुआ है । भारतीय संस्कृति न सिर्फ स्मारकों व कला वस्तुओं का संग्रहण है, बल्कि यह अनेक परंपराओं और विचारों का संग्रहण है । भारतीय संस्कृति एक ऐसे खजाने की तरह है जो कभी भी खत्म नहीं हो सकती व पीढ़ी दर पीढ़ी यह विरासत के रूप में बस बढ़ती ही रहती है । भारतीय संस्कृति गंगा-जमुना संस्कृति कही जाती है । यह अनेक महापुरुषों की गाथाओं का परिचायक रही है । महात्मा बुद्ध, तुलसीदास जी, प्रेमचंद, रविंद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, कबीरदास, वाल्मीकि जी जैसे अनेक महापुरुषों का जन्म भारत की इसी धरती पर हुआ है । इसके अलावा भारतीय संस्कृति अनेकों महान ग्रंथों (रामायण, महाभारत, गीता आदि), साहित्य, संगीत, तीर्थस्थल, धर्मों, भाषाओं व बोलियों तथा विभिन्न नृत्य शैलियों की अद्भुत संग्राहक है । अगर भारतीय संस्कृति की विरासत को इसी तरह आगे बढ़ाना है तो बस जरूरत है इसे और संजोने की, इसे संरक्षित रखने की, इसकी अहमियत दुनिया को बताने की ।

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