‘नारायण-नारायण’ गाते भगवन्नाम निरन्तर प्रेम रस सुधा सागर मग्न तन मन की स्मृति नहीं तनिक-सी, वृत्ति नित्य प्रभु पद संलग्न ।। सहज बजाते वीणा सुस्वर मधुर, लिये कर में करताल । हो उन्मत्त नृत्य करते, मुनि नारद रहते नित्यनिहाल’
सूचना और संवाद के क्षेत्र में सबसे पहला नाम नारद मुनि का ही आता है । अपनी वीणा की मधुर तान पर भगवद् गुणों का गान करते हुए निरंतर विचरण करने वाले नारद मुनि सब जगह की पल- पल की खबर रखते थे । नारद जी समस्त लोकों में, देव हो या दानव, सबके विश्वास- पात्र थे । ये सबके बीच संवाद स्थापित करने का काम करते थे । नारद जी ने ही वेदों का संपादन करके यह निश्चित किया था कि कौन-सा मंत्र किस वेद में जाएगा, अर्थात् ऋग्वेद में कौन-से मंत्र जायेंगे या यजुर्वेद में कौन-से मंत्र जायेंगे । विष्णु जी के परम भक्तों में सबसे ऊपर नारद जी का ही नाम आता है । खड़ी शिखा, हाथ में वीणा लिये मुख से ‘नारायण’ शब्द का जाप करते हुए भगवान के गुणों का गान करते नारद मुनि निरंतर विचरण किया करते हैं । ग्रंथों में देवर्षि नारद को भगवान विष्णु का ही अवतार बताया गया है । भगवान की हर लीला में नारद जी का हाथ होता है । स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए श्रीमदभागवत गीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में कहा है- देवर्षीणाम्चनारद ! अर्थात् देवर्षियों में मैं नारद हूं । अथर्ववेद, मैत्रायणी संहिता आदि में भी नारद जी का उल्लेख है । महाभारत के सभा पर्व के पांचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय भली-भांति दिया गया है । उसमें कहा गया है- देवर्षि नारद वेद-उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास व पुराणों के विशेषज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष, खगोल-भूगोल के विद्वान, त्रिलोकी पर्यटक, संगीत के ज्ञाता, प्रभावशाली वक्ता, अच्छे नीतिज्ञ, कवि, बृहस्पति जैसे महा विद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले और सर्वत्र गति वाले हैं ।
शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्रों में से एक हैं । शास्त्रों में नारद मुनि को देवर्षि की उपाधि दी गई है, लेकिन बड़ी कठिन तपस्या के बाद ही उन्हें देवर्षि का पद प्राप्त हुआ था । देवर्षि नारद धर्म तथा लोक कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं । नारद जी ने अनगिनत ऐसे काम किए हैं जिन्हें दूसरों के लिये कर पाना बहुत मुश्किल था । नारद जी ने ही भृगु कन्या लक्ष्मी का विवाह विष्णु के साथ करवाया, महादेव द्वारा जलंधर का विनाश करवाया, कंस को आकाशवाणी का अर्थ समझाया, वाल्मीकि जी को रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी, व्यास से भागवत की रचना करवायी, प्रह्लाद और ध्रुव को उपदेश देकर महान भक्त बनाया, बृहस्पति और शुकदेव जैसे महान ज्ञाताओं को उपदेश देकर उनकी शंकाओं का समाधान किया । इन कामों के साथ ही नारद जी ने कई वेदों की रचना भी की है । उन्होंने ‘नारद पांचरात्र’, ‘नारद के भक्तिसूत्र’, ‘बृहन्नारदीय उपपुराण संहिता’, ‘नारद-परिव्राज कोपनिषद’ के अलावा 18 महापुराणों में से एक 25 हजार श्लोकों वाले प्रसिद्ध ‘नारद महापुराण’ की रचना की है । इस पुराण में भगवान विष्णु की भक्ति की महिमा, मोक्ष, धर्म, संगीत, ब्रह्मज्ञान, प्रायश्चित आदि अनेक विषयों के बारे में विस्तार से बताया गया है । हालांकि वर्तमान में उपलब्ध नारद पुराण में केवल बाईस हजार श्लोक हैं । बाकी तीन हजार श्लोक प्राचीन पाण्डुलिपि के नष्ट हो जाने के कारण उपलब्थ नहीं हैं । इन श्लोकों में से 750 श्लोक ज्योतिषशास्त्र पर आधारित हैं । नारद जी की महिमा को याद करने के लिये ही ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नारद जयंती मनाई जाती है, क्योंकि देवर्षि नारद को एक पत्रकार के रूप में देखा जाता है । इसलिए इनकी जयंती के अवसर पर पत्रकारों के सम्मान में प्रतिष्ठित नारद पत्रकार सम्मान समारोह आयोजित किया जाता है । इस समारोह में उन पत्रकारों को सम्मान दिया जाता है, जिन्होंने समाज की भलाई लिये अपना योगदान दिया हो । इस मौके पर गोष्ठियों एवं प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है ।
नारद कुंड, मथुरा- ब्रजभूमि पर चैरासी कोस परिक्रमा मार्ग का प्रमुख धार्मिक स्थल नारद कुंड ही है । गोवर्धन से राधाकुंड मार्ग पर करीब दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित नारद कुंड देवर्षि नारद मुनि की तपस्या का साक्षी रहा है । देवर्षि की उपाधि पाने से पहले नारद जी ने यहां कई वर्षों तक कठिन तपस्या की थी । शास्त्रों में इस जगह को नारद वन का नाम दिया गया है, लेकिन वर्तमान में इसे नारद कुंड के नाम से ही जाना जाता है । कहते हैं कुछ समय तक नारद जी के साथ-साथ भगवान श्री कृष्ण ने भी यहां निवास किया था । भविष्य पुराण के अनुसार नारद जी ने ध्रुव को इसी स्थान पर गुरु मंत्र दिया था । इसी स्थान पर नारद जी ने दैत्यराज हिरण्यकश्यप की धर्मपत्नी कयाधु को भक्ति-ज्ञान का उपदेश दिया था जिसके फलस्वरूप विष्णु भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ । मान्यता है कि इस कुंड मे जो भी स्नान करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं । इस जगह पर एक पीपल का वृक्ष लगा हुआ है, जिसे पारस पीपल के नाम से जाना जाता है । इस वृक्ष पर चार रंग के फूल खिलते हैं । जो भी इस कुंड में नहाता है, वह इस वृक्ष की अवश्य पूजा करता है ।
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