सुबह उठकर सूर्य की ओर मुंह करके हाथों को सिर से ऊपर उठाकार सूर्य को जल देने की प्रकिृया मात्र धार्मिक ही नही बल्कि वैज्ञानिक भी है! क्योकि जब हम जल को ऊपर से गिराते हैं, तो सूर्य की किरणे जल की धारा से परावर्तित होकर हमारे शरीर पर पड़ती हैं और हमारे स्नायुतंत्र को मजबूत बनती हैं। इसी प्रकार कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को जल देना हमारे स्वास्थ्य को पुष्ट करने का सशक्त माध्यम है।
सूर्य को अध्र्य देना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। दरअसल जब हम लोटे से जल को सूर्य के समक्ष गिराते है तो सूर्य की किरणें परावर्तित होकर जितनी बार आँखों तक पहुँचती है, उससे हमारा स्नायुतंत्र सक्रिय हो जाता है और दिमाग की कार्य क्षमता बढ़ जाती हैं। छठ के दिन जो ग्रह नक्षत्रों की स्थिति होती है। उसमें कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्ययोदय और सूर्यास्त के समय अध्र्य देना निश्चय ही हमारे स्वास्थ को पुष्ट करने का एक सशक्त वैज्ञानिक माध्यम है।
छठ का त्योहार सूर्योपासना का पर्व होता है। सायंकाल और अगले दिन प्रातः काल में सूर्य की पहली किरण को अर्घ देकर नमन किया जाता है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है, सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामनाओं की पूर्ति का यह त्योहार सभी समान रुप से मनाते हैं। प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि इस पर दृष्टि डालें तो पाएंगे कि छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है। छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है तथा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न कि जाती है। इस बार छठ पूजा का आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी, 4 नवम्बर से आरंभ होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी, 6 नवम्बर को सम्पन्न हो रही है। इस लम्बे अंतराल में व्रतधारी पानी भी ग्रहण नहीं करता। बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों में छठ पर्व पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। छठ त्योहार के लिये लोग फल, गन्ना, डालिया और सूप आदि खरीदते हैं। घर के सभी लोग व्रती के साथ तीन दिन तक सुबह और शाम को घाट पर उसी श्रद्धा के साथ जाते है। इस पर्व का आयोजन बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त, देश के कोने-कोने में देखा जा सकता है। देश-विदेशों में रहने वाले भारतीय भी इस पर्व को बहुत धूम धाम से मनाते हैं। यह व्रत अधिकतर घर की महिलाएं ही करती है। घाट पर मेले जैसा माहौल होता है। छठ पूजा व्रत का आरंभ नहा खा, खरना, लोहंडा, साँझ अर्ध सूर्योदय अर्ध से संपन्न होती है। व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत करते हैं व्रत समाप्त होने के बाद ही व्रती अन्न और जल ग्रहण करते हैं। खरना पूजन से ही घर में देवी षष्ठी का आगमन हो जाता है। इस प्रकार भगवान सूर्य के इस पावन पर्व में शक्ति व ब्रह्मा दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है। षष्ठी के दिन घर के समीप ही किसी नदी या जलाशय के किनारे पर एकत्रित होकर पहले दिन से तीसरे दिन तक इस महा पर्व की श्रद्धा को संपन्न करते हुये अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्य को अर्ध देने के साथ ही इस पर्व की समाप्ति होती है। छठ के महा पर्व का वैज्ञानिक स्वरुप- छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी है। यह पर्व लोगों को स्वच्छता के साथ प्रकृति को संरक्षित करने का संदेश भी देता है। आयुर्वेद में प्राकृतिक में पाई जाने वाली चीजो का बहुत महत्व है अदरक, मूली, गाजर, हल्दी जैसी गुणकारी सब्जियों से अर्ध देना भी इसी का संदेश है। यह पर्व लोगों को प्रकृति के समीप लाता है। सुबह प्रातः उठ कर सूर्य को अर्ध देना भी प्राकृतिक के स्वरुप को समझाता है। जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। साथ ही साफ-सफाई पर भी ध्यान दिया जाता है, जो हमें विभिन्न बीमारियों से बचाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कमर तक पानी में डूबकर सूर्य की ओर देखना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। इससे टाक्सिफिकेशन की प्रक्रिया होती है। इससे सूर्य की किरणों में 16 कलाएं होती हैं। जैसे प्रतिबिंब अपवर्तन, डेविस्मन, स्कैटरिंग, डिस्पर्शन, वाइब्रेशन इत्यादि। लोटे से आड़े तिरछे जल की धारा से सूर्य की किरणों परावर्तित होकर जितनी बार आंखों तक पहुंचती हैं, उससे स्नायुतंत्र जो शरीर को नियंत्रित करते हैं, सक्रिय हो जाता है। दिमाग की कार्य क्षमता बढ़ जाती है। आज के वर्तमान कल की भाग दौड़ की जीवन शैली में हम अपने आप को एक मशीनरी तन्त्र की तरह प्रयोग करते है जिस में हम ये भूल जाते हैं प्रकृति से ही जीवन की उत्पत्ती हुई है। ये पर्व हमें पुनः जीवन की ओर ले जाने का कार्य करता है। हमें प्राकृति के अनमोल स्वरुप से अवगत करता है।
सूर्य देव का पुत्र की प्राप्ति मंत्र-
ऊँ भास्कराय पुत्रं देहि महातेजसे।
धीमहि तन्नः सूर्य प्रचोदयात।।
हृदय, नेत्र, पीलिया, कुष्ठ रोगों को नष्ट करने के मंत्र-
ऊँ हृां हृीं सः सूर्याय नमः।
व्यवसाय में वृद्धि के मंत्र-
ऊँ घृणिः सूर्य आदिव्योम।
शत्रुओं के नाश के मंत्र-
शत्रु नाशाय ऊँ हृीं हृीं सूर्याय नमः।
मनोकामनाओं की पूर्ति के मंत्र-
ऊँ हृां हृीं सः।
ग्रहों की दशा के निवारण मंत्र-
ऊँ हृीं श्रीं आं ग्रहधिराजाय आदित्याय नमः।
सूर्यदेव को चन्दन समर्पण मंत्र-
दिव्यं गन्धाढ़्य सुमनोहरम्।
वबिलेपनं रश्मि दाता चन्दनं प्रति गृह यन्ताम्।।
वस्त्रादि अर्पण करने के मंत्र-
शीत् वातोष्ण संत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहा लंकारणं वस्त्र मतः शांति प्रयच्छ में।।
सूर्यदेव की पूजा के मंत्र-
नवभि स्तन्तु मिर्यक्तं त्रिगुनं देवता मयम्।
उपवीतं मया दत्तं गृहाणां परमेश्वरः।।
सूर्यदेव को घृत स्नान कराने के मंत्र-
नवनीत समुतपन्नं सर्व संतोष कारकम्।
घृत तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थ प्रति गृहयन्ताम्।।
सूर्यदेव को अर्घ समर्पण करने का मंत्र-
ऊँ सूर्य देवं नमस्तेस्तुगृहाणं करूणाकरं।
अर्घ्यं च फलं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतैयुतम्।
सूर्य को गंगाजल समर्पण करने का मंत्र-
ऊँ सर्व तीर्थं समूदभूतं पाद्य गन्धदि भिर्युतम्।
प्रचंण्ड ज्योति गृहाणेदं दिवाकर भक्त वत्सलां।।
सूर्यदेव को आसन अर्पण करने का मंत्र-
विचित्र रत्न खन्चित दिव्या स्तरण सन्युक्तम्।
स्वर्ण सिंहासन चारु गृहीश्व रवि पूजितां।।
सूर्यदेव का आवाहन मंत्र-
ऊँ सहस्त्र शीर्षाः पुरूषः सहस्त्राक्षः सहस्त्र पाक्ष।
स भूमि ग्वं सब्येत स्तपुत्वा अयतिष्ठदर्शां गुलम्।।
सूर्य को दुग्ध से स्नान कराने का मंत्र-
काम धेनु समूद भूतं सर्वेषां जीवन परम्।
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थ समर्पितम्।।
सूर्यदेव को दीप दर्शन कराने का मंत्र-
साज्यं च वर्ति सं बह्निणां योजितं मया।
दीप गृहाण देवेश त्रैलोक्य तिमिरा पहम्।।.
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