निराशाजनक वातावरण के युग में पूरे समाज में शांति, भाईचारे, प्रेम व एकता का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध को समर्पित है बुद्ध पूर्णिमा का पर्व । वैशाख मास की पूर्णिमा का भारतीय संस्कृति में बेहद ही अद्वितीय स्थान है । यह पर्व अपने आप में कई ऐतिहासिक पलों को संजोये हुये है । पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म, बुद्धत्व की प्राप्ति और स्वर्गारोहण भी मनाया जाता है । यह पर्व भारत, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया पाकिस्तान व अफगानिस्तान सहित उन सभी स्थानों पर मनाया जाता है । पूर्णिमा के दिन बौद्ध अनुयायी अपने घरों में दीपक जलाते हैं । फूलों से घरों को सजाते हैं । सभी बौद्ध ग्रंथ का पाठ करते हैं । बोधगया सहित भगवान बुद्ध सें सम्बंधित सभी तीर्थस्थलों व स्तूपों व महत्व के स्थानों को सजाया जाता है । कई जगह पर मेले भी लगते हैं । बोधगया में काफी लोग एकत्र होते हैं । मंदिरों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल फूल चढ़ाये जाते हैं । दीपक जलाकर विधिवत पूजा करते हैं तथा इस दिन पवित्र बोधिवृक्ष की भी पूजा करते हैं । बौद्ध धर्म में मान्यता है कि इस दिन किये गये कार्याें के शुभ परिणाम निकलते हैं । इस अवसर पर कुशीनगर में एक माह का मेला भी लगता है । कुशीनगर स्थित महापरिनिर्वाण मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफा से प्रेरित है । इस मंदिर में भगवान बुद्ध की लेटी हुई 6.1 मीटर लम्बी मूर्ति है । यह लाल बलुई मिटटी की बनी हुई है । यह मूर्ति भी इसी स्थान से निकाली गयी थी। मंदिर के पूर्वी हिस्से में एक स्तूप भी है । कहा जाता है कि यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था । भगवान बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया । उन्होंने दुख निवारण के लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि, दुःख निवारण के लिये अष्टांगिक मार्ग सुझाया । अहिंसा पर जोर दिया । यज्ञ व पशुबलि की निंदा की । बुद्ध के अनुसार जीवन की पवित्रता, जीवन में पूर्णता, निर्वाण, तृष्णा और यह मानना कि सभी संस्कार अनित्य हैं, कर्म को मानव के नैतिक संस्थान का आधार मानना उनके प्रमुख धाम हैं ।
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