क्या है गायत्री मंत्र का अर्थ

माँ गायत्री वेदमाता भी पुकारी जाती हैं। धार्मिक दृष्टि देखें तो गायत्री मन्त्र (Gayatri Mantra), इस समस्त ब्रह्माण्ड और व्याप्त जीवित जगत के कल्याण का सबसे बड़ा स्रोत है | ये एक ऐसा मंत्र है जिसकी उपासना स्वयं देवता भी करते हैं जिसके गुणों का वर्णन करना वेदों और शास्त्रों में भी संभव नहीं है। माना जाता है की गायत्री मंत्र की उपासना से सभी पापों का नाश, आध्यात्मिक सुखों से लेकर भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है ।

Gayatri Mantra

गाय त्री साधना में गायत्री मंत्र का बहुत महत्व है। इस मंत्र के चौबीस अक्षर न केवल 24 देवी-देवताओं के स्मरण के बीज हैं, बल्कि ये बीज अक्षर वेद, धर्मशास्त्र में बताए अद्भुत ज्ञान का आधार भी हैं। वेदों में गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra) जप से आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन व ब्रह्मचर्य के रूप में मिलने वाले सात फल बताए गए हैं। असल में गायत्री मंत्र ईश्वर का चिंतन, ईश्वरीय भाव को अपनाने और बुद्धि की पवित्रता की प्रार्थना है।

अब जानते है इसी अद्भुत मंत्र का अर्थ |

ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं

भर्गो देवस्य धीमहि।

धियो यो न: प्रचोदयात्।

ऊँ – ईश्वर 
भू: – प्राणस्वरूप 
भुव: – दु:खनाशक
स्व: – सुख स्वरूप 
तत् – उस 
सवितु: – तेजस्वी 
वरेण्यं – श्रेष्ठ 
भर्ग: – पापनाशक 
देवस्य – दिव्य
धीमहि – धारण करे 
धियो – बुद्धि
यो – जो 
न: – हमारी 
प्रचोदयात् – प्रेरित करे
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सभी को जोड़ने पर अर्थ है – उस प्राणस्वरूप, दु:ख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह ईश्वर हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करे।

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