छठ व्रत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार भगवान सूर्य देव को समर्पित एक विशेष पर्व है। भारत के कई हिस्सों में खास कर यूपी और बिहार में तो इसे महापर्व माना जाता है। शुद्धता, स्वच्छता और पवित्रता के साथ मनाया जाने वाला यह पर्व आदि काल से मनाया जाता है। छठ व्रत में छठी माता की पूजा होती है और उनसे संतान की रक्षा का वर मांगा जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार सूर्य षष्ठी या छठव्रत की शुरुआत रामायण काल से हुई थी। इस व्रत को सीता माता समेत द्वापर युग में द्रौपदी ने भी किया था।

छठ पूजा (Chath Puja) कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे छठ, छठी माई के पूजा, छठ पर्व, छठ पूजा, डाला छठ, डाला पूजा, सूर्य षष्ठी व्रत आदि। छठ चार दिवसीय उत्सव है। जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है। छठ व्रत सबसे कठीन व्रतों में से एक माना जाता है, इस दौरान व्रत धारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं और पानी भी ग्रहण नहीं करते।
प्रमुख रूप से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला यह पर आज के समयानुसार देश के कोने-कोने तक बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। पश्चिमी यूपी में भी अब छठ का उत्सव देखने को मिलता है। कई जगहों पर तो बड़े ही उल्लास के साथ संगीत कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है जिसमें भोजपुरी समाज से कई कालाकार आते हैं और अपनी प्रस्तुती देते हैं।
हिंदूधर्म में छठ पूजा (Chath Puja) एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसमें सूर्य उदय के साथ साथ सूर्य अस्त की भी पूजा की जाती है। छठ पर्व की शुरूआत नहाय खाय से होती है। इसके बाद खरना होता है। खरना के अगले दिन दिन भर व्रत रहने के बाद शाम को संध्या अर्घ्य देने के लिए लोग घाट नदी, पोखरों पर जाते हैं। संध्या अर्घ्य के अगले दिन सुबह उषा अर्घ्य दिया जाता है।