भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन भागवत गीता (Bhagwat Geeta) जयंती के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता हैं। भागवत गीता का जन्म भगवान कृष्ण के मुख से कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था।
गीता में जीवन का सार हैं जिसे पढ़कर कलयुग में मनुष्य जाति को सही राह मिलती हैं | इसके महत्व को बनाये रखने के लिए ही “गीता जयंती महत्व एवम स्वाध्याय परिवार का विवरण किया गया हैं। गीता में जीवन का सार हैं जिसे पढ़कर कलयुग में मनुष्य जाति को सही राह मिलती हैं। इसके महत्व को बनाये रखने के लिए ही गीता जयंती का पर्व बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है।
हिन्दू धर्म के सबसे बड़े ग्रन्थ के जन्म दिवस को गीता जयंती कहा जाता हैं। भागवत गीता (Bhagwat Geeta) का हिन्दू समाज में सबसे उपर स्थान माना जाता हैं इसे सबसे पवित्र ग्रन्थ माना जाता हैं। भागवत गीता स्वयं श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी. कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन अपने सगो को दुश्मन के रूप में सामने देख, विचलित हो जाता हैं और उसने शस्त्र उठाने से इंकार कर देता हैं। तब स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मनुष्य धर्म एवम कर्म का उपदेश दिया | यही उपदेश गीता में लिखा हुआ है, जिसमे मनुष्य जाति के सभी धर्मो एवम कर्मो का समावेश हैं।
कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र का मैदान गीता की उत्पत्ति का स्थान है, कहा जाता है कलयुग में प्रारंभ के महज 30 वर्षों के पहले ही गीता का जन्म हुआ, जिसे जन्म स्वयम श्री कृष्ण ने नंदी घोष रथ के सारथि के रूप में दिया था | गीता का जन्म आज से लगभग 5140 वर्ष पूर्व हुआ था। गीता केवल हिन्दू सभ्यता को मार्गदर्शन नहीं देती। यह जाति वाद से कही उपर मानवता का ज्ञान देती हैं। गीता के अठारह अध्यायो में मनुष्य के सभी धर्म एवम कर्म का ब्यौरा हैं | इसमें सत युग से कल युग तक मनुष्य के कर्म एवम धर्म का ज्ञान हैं | गीता के श्लोको में मनुष्य जाति का आधार छिपा हैं | मनुष्य के लिए क्या कर्म हैं उसका क्या धर्म हैं | इसका विस्तार स्वयं कृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की उस धरती पर किया था। उसी ज्ञान को गीता के पन्नो में लिखा गया हैं। यह सबसे पवित्र और मानव जाति का उद्धार करने वाला ग्रन्थ हैं।
गीता का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया | जब गीता (Bhagwat Geeta) का वाचन स्वयम प्रभु ने किये उस वक्त कलयुग का प्रारंभ हो चूका था। कलयुग ऐसा दौर हैं जिसमे गुरु एवम ईश्वर स्वयम धरती पर मौजूद नहीं हैं जो भटकते अर्जुन को सही राह दिखा पायें। ऐसे में गीता के उपदेश मनुष्य जाति को राह प्रशस्त करते हैं | इसी कारण महाभारत काल में गीता की उत्त्पत्ति की गई।